Monday, 2 March 2015

KASHI KI HOLI

वाराणसी. पूरे देश में इस समय होली का रंग लोगों के सि‍र चढ़कर बोल रहा है. ये होली तब और खास हो जाती है, जब महादेव खुद अपने भक्तों के साथ होली के रंगों में सराबोर हो जाते हैं. बाबा वि‍श्‍वनाथ त्रि‍लोक से न्यारी नगरी काशी में विराजते हैं. शनिवार देर शाम होली के महापर्व के पहले परंपरा के अनुसार सृष्टि के पालनहार बाबा विश्वनाथ मां भगवती का गौना करा कर वापस अपने नगरी में विराजने काशी चले आए.
इस पावन दिन पर बाबा की चल प्रतिमा का दर्शन भी श्रद्धालुओं को होता है. बाबा के दर्शन को पांच फीट की संकरी गलियों में हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है. हर भक्त के मन में बस यही रहता है कि रंग भरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेली जाये. ऐसी आस्था का अद्भुत संगम कहीं देखने को नहीं मिलता, जहां महादेव खुद भक्तों के साथ होली खेलते हों.
विश्वनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक पं. श्रीकांत मिश्र ने बताया कि मान्यता के अनुसार देव लोक के सारे देवी देवता इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेंकते हैं. पं. मिश्र ने बताया कि यह परंपरा दो सौ वर्षों से ज्‍यादा समय से जारी है. रंग भरी एकादशी का पर्व इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन महादेव मां भगवती का गौना कराकर वापस घर आते हैं.
पं. मिश्र ने बताया कि बसंत पंचमी को बाबा का तिलक, शिवरात्रि को विवाह और रंग भरी एकादशी को गौना यानी माता पार्वती अपनी ससुराल काशी आ जाती हैं. रंग भरी एकादशी के दिन रंगों और गुलालों से काशी नहा उठती है. ये रंग तब चटकीला हो जाता है, जब रंग बाबा और मां पार्वती के ऊपर पड़ता है.
वैसे तो काशी में रंगों की छटा शिवरात्रि के दिन से ही शुरू हो जाती है, लेकिन काशी नगरी में एक दिन ऐसा भी रहता है, जब बाबा खुद अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं. रंगभरी एकादशी के दिन बाबा की चल प्रतिमा निकलती है. संकरी गलियों में बाबा और मां पार्वती की प्रतिमा घुमाने के बाद पावन प्रतिमा को बाबा विश्‍वनाथ के आसान पर बैठाया जाता है.

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